बसपा की सियासी जमीन पर खड़ी सपा की इमारत, अखिलेश यादव के आधे से ज्यादा सांसद करते थे कभी हाथी की सवारी

By mnnews24x7.com Sat, Jun 29th 2024 मिसिरगवां समाचार     

बसपा की सियासी जमीन पर खड़ी सपा की इमारत, अखिलेश यादव के आधे से ज्यादा सांसद करते थे कभी हाथी की सवारी

लखनऊ।उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को अब तक की सबसे बड़ी जीत मिली है।जीत के लिहाज से आज सपा यूपी की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। हालांकि अखिलेश यादव की पार्टी के चुने गए सांसदों में ज्यादातर का नाता एक समय मायावती की पार्टी बसपा से रहा है।

समाजवादी पार्टी के मुखिया प्रमुख अखिलेश यादव इस बार लोकसभा चुनाव में यूपी की सियासत के बादशाह बनकर उभरे हैं।यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से सपा ने 37 सीटों पर जीत का परचम लहराते हुए भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत से दूर कर दिया।पीडीए फॉर्मूले ने अखिलेश यादव का साथ दिया।इस नई सोशल इंजीनियरिंग के जरिए भाजपा को मात देने का मंत्र सपा के हाथ जरूर लग गया है।कांशीराम की प्रयोगशाला से निकले नेताओं को सहारे सपा न सिर्फ गैर-यादव ओबीसी समाज को बल्कि बसपा के दलित वोटबैंक को भी जोड़ने में सफल रही है।हालांकि 2024 में खड़ी हुई सपा की सियासी इमारत कहीं न कहीं बसपा की जमीन पर है।

लोकसभा चुनाव में सपा से जीते 37 में से 17 सांसद ऐसे हैं, जिनका किसी न किसी तरह से नाता बसपा से रहा है। वे बसपा से विधायक रहे या फिर लोकसभा सांसद रह चुके हैं। इतना ही नहीं कुछ नेता ऐसे भी हैं, जिन्होंने कांशीराम के साथ बसपा के गठन में अपना योगदान दिया।

*सपा में दलित और यादव एक साथ*

बसपा के संस्थापक सदस्य पूर्व मंत्री घूरा राम सपा के प्रति वफादारी जताने वाले पहले बड़े दलित नेता थे।इसके बाद फिर बसपा नेताओं का सपा में आने का सिलसिला शुरू हुआ जो लगातार जारी रहा।बसपा से आए नेताओं को टिकट देकर सिर्फ अखिलेश यादव ने अपने सांसदों की संख्या ही नहीं बढ़ाई बल्कि उस परिकल्पना को भी तोड़ दिया है कि यूपी में दलित और यादव कभी एक नहीं हो सकते।

लखनऊ की मोहनलालगंज लोकसभा से सपा से सांसद बने आरके चौधरी,जालौन से सांसद नारायणदास अहिरवार, जौनपुर से सांसद बने बाबूसिंह कुशवाहा बसपा के शुरुआती के दौर के नेता रहे हैं।अहिरवार और आरके चौधरी ने बसपा के संस्थापक कांशीराम की बीएस फोर से राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी और बसपा के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं।इसके अलावा बस्ती लोकसभा से सपा से सांसद बने राम प्रसाद चौधरी भी बसपा के दिग्गज नेताओं में गिने जाते थे, लेकिन राम प्रसाद चौधरी ने अपना राजनीतिक सफर जनता दल से शुरू किया था और बाद में कांशीराम से प्रभावित होकर बसपा का दामन थाम लिया था।

*बसपा से सफर करने वाले नेता*

श्रावस्ती से सांसद राम शिरोमणि वर्मा और सलेमुपर सांसद रमाशंकर राजभर ने बसपा से ही राजनीतिक शुरुआत की थी। रमाशंकर राजभर ने अपना सियासी सफर 1991 में शुरू किया था,लेकिन 2009 में रमाशंकर पहली बार जीते। बसपा से रमाशंकर सपा के तत्कालीन सांसद हरिकेवल प्रसाद को हराया था और अब हरिकेवल के बेटे को हराकर सांसद बने। श्रीवस्ती से सांसद बने राम शिरोमणि वर्मा ने भी अपना सियासी सफर बसपा से शुरू किया। राम शिरोमणि वर्मा 2019 में पहली बार सांसद बने और अब दूसरी बार सपा से सांसद बने।अंबेडकरनगर से सपा से सांसद बने लालजी वर्मा ने लोकदल से अपने सियासी पारी की शुरुआत की,लेकिन 1996 में लालजी वर्मा ने बसपा का दामन थाम लिया।इसके बाद लालजी वर्मा ने 2022 के चुनाव से पहले सपा का दामन थाम लिया। लालजी वर्मा पहले विधायक बने और अब सांसद बने हैं।इटावा से सांसद जीतेंद्र कुमार दोहरे इस बार सपा से सांसद बने हैं,लेकिन जितेन्द्र कुमार दोहरे ने बसपा से सियासी शुरूआत की थी। जितेन्द्र कुमार दोहरे इटावा से बसपा जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

*देवेश शाक्य ने कल्याण सिंह के बेटे को हराया*

एटा लोकसभा से सांसद बने देवेश शाक्य ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत बसपा से की थी।देवेश शाक्य के बड़े भाई विनय शाक्य बसपा के कद्दावर नेता रहे हैं।बसपा सरकार में मंत्री भी रहे हैं।विनय शाक्य साथ ही देवेश शाक्य बसपा से जिला पंचायत सदस्य रहे हैं।बसपा के संगठन से भी जुड़े रहे, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा छोड़कर सपा में आए थे।इस लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने देवेश शाक्य को एटा से टिकट दिया था।पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह को देवेश शाक्य ने हरा दिया।आंवला से सांसद बने नीरज मौर्य ने भी अपनी सियासी पारी की शुरुआत बसपा से की थी।बसपा से नीरज मौर्य दो बार जलालाबाद विधायक बने। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले नीरज मौर्य सपा में शामिल हो गए थे,लेकिन विधानसभा का चुनाव हार गए थे।इसके बाद भी अखिलेश यादव ने इस बार लोकसभा चुनाव में टिकट दिया और आंवला से लोकसभा सांसद बने। देवेश शाक्य और नीरज मौर्य दोनों ही स्वामी प्रसाद मौर्य के करीबी नेताओं में गिने जाते हैं और उन्हीं के साथ सपा का दामन थामा था।गाजीपुर से सांसद बने अफजाल अंसारी ने भी अपनी सियासी पारी की शुरुआत लेफ्ट से की थी।उसके बाद सपा से विधायक और सांसद बने।अफजाल अंसारी 2019 में बसपा से सांसद बने।इस बार लोकसभा चुनाव में सपा सांसद बने। अफजाल अंसारी ने बसपा से इस्तीफा तक नहीं दिया था।ऐसे ही 2019 में बसपा से चुनाव लड़ने वाली रुचि वीरा भी इस बार मुरादाबाद से सपा से सांसद बनी हैं। 2019 में रुचि वीरा भले ही सपा से चुनाव लड़ी थी,लेकिन उन्होंने अपनी सियासी पारी की शुरुआत बसपा से की थी।

*इकरा हसन के माता-पिता बसपा से रहे सांसद*

सुल्तानपुर से सांसद बने रामभुआल निषाद ने अपने सियासी पारी की शुरुआत बसपा से की और आगे बढ़े।बसपा से रामभुआल विधायक रहे और बसपा सरकार में राज्यमंत्री रहे, लेकिन बाद में रामभुआल बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया।इस बार लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर से भाजपा की मेनिका गांधी के खिलाफ सपा ने रामभुआल को उतारा था।रामभुआल बने।चंदौली से सपा से सांसद बने वीरेंद्र सिंह बसपा के टिकट पर विधायक रह चुके हैं।वीरेंद्र सिंह बाद में बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया। इसके बाद से वीरेंद्र सिंह सपा में हैं।इस बार सांसद बने।कौशांबी से सांसद बने पुष्पेन्द्र सरोज सपा के महासचिव इंद्रजीत सरोज के बेटे हैं।इंद्रजीत सरोज सपा से विधायक हैं। इंद्रजीत सरोज ने अपने सियासी पारी की शुरुआत बसपा से की थी।बसपा के शुरुआती दौर के नेता हैं और कांशीराम के साथ जुड़े रहे हैं। इंद्रजीत सरोज बसपा के प्रदेश अध्यक्ष तक रह चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इंद्रजीत सरोज ने सपा का दामन थामा था।इस बार इंद्रजीत सरोज के बेटे पुष्पेंद्र सरोज कौशांबी से सपा से सांसद बने हैं।कैराना से सांसद बनी इकरा हसन ने अपने सियासी पारी की शुरुआत सपा से शुरू किया। इकरा हसन के पिता मुनव्वर हसन और मां तब्बसुम हसन बसपा से सांसद रह चुकी हैं। इकरा हसन का परिवार बसपा से लेकर सपा और आरएलडी तक में रहा है।

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