*जी एस टी के कठिन प्रावधानों से छोटे व्यापारी नहीं करा पा रहे पंजीयन*
*जी एस टी के कठिन प्रावधानों से छोटे व्यापारी नहीं करा पा रहे पंजीयन*
*छोटे व्यापारी दे सकते है देश के विकास में बड़ी हिस्सेदारी*
पहले नोट बंदी, फिर जीएसटी का विकराल स्वरूप और लगातार दो वर्ष के लॉक डाउन ने देश के व्यापार और व्यापारियों की जिंदगी में भयानक भूचाल ला दिया।
खासकर छोटे उद्धमियो और छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ दी। जितनी जाने कोविड की वजह से आफत में है उससे कही ज्यादा मंदी के कारण।
छोटा हो या बड़ा आज व्यापारी दिन प्रतिदिन तिल तिल कर मर रहा है। बावजूद इसके सरकारों द्वारा आज तक कोई माकूल प्रयास छोटे व्यवसाईयो के हित में नहीं किया गया।
अगर सरकार हमारे सुझाव पर अमल करे तो सरकार की आमदनी भी दोगुनी हो जाएगी और देश का छोटा व्यापारी भी राहत पा सकेगा।
जीएसटी की किलिष्टता के कारण आज जितना पैसा व्यापारी सरकार को टैक्स में देता है उससे ज्यादा पैसा उन्हें वकील और सीए को देना पड़ता है।
सरकार के अनुसार आज बीस लाख से ज्यादा वार्षिक विक्रय होने पर जीएसटी नंबर लिया जा सकता है।
लेकिन चालीस लाख के अंदर वार्षिक विक्रय होने पर जीएसटी नंबर लेना आवश्यक नहीं है।
बजहे अलग अलग हो सकती है लेकिन आज देश में दस प्रतिशत से कम व्यापारी ही जीएसटी नंबर ले सका है।
जो जीएसटी अदा कर रहे है वह भी बहुत मुश्किलों से घिरे हुए है।
विचानीय प्रश्न यही है कि सरकार ने ऐसा प्रयास क्यों नहीं किया कि शत प्रतिशत व्यापारी पंजीयन करा सके। अगर ऐसा होता तो सरकार की आमदनी कई गुनी होने में देर नहीं लगेगी।
*अब यक्ष प्रश्न यही है कि छोटे व्यापारी क्यों कतराते है, जिसका एकमात्र जबाव जीएसटी की कठिनता ही है।*
जीएसटी पंजीयन न होने से व्यापारी बैंक में करंट एकाउंट नही खुलवा पाता न ही बैंक लिमिट का लाभ ले पाता है। न ही उसे बैंक आसानी से राइन उपलब्ध करा पाती जिससे उसका व्यापार कभी बढ़ ही नही पाता।
अधिकांशतः ग्राहक जीएसटी नंबर न होने की वजह से छोटे व्यापारी से सामग्री क्रय नही करता। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं भी जीएसटी बिल के बिना सामग्री क्रय नही करती।
ऐसा व्यापारी स्वयं आवश्यक एजेंसियों, कंपनियों और फेक्ट्रियो से डायरेक्ट नही जुड़ पाता।
जिससे वह अपने व्यवसाय में हमेशा छोटा का छोटा ही रह जाता है, क्योंकि उसकी दुकान में पहुंचने वाली सामग्री एक या दो स्पीड ब्रेकर पार करते करते महंगी हो जाती है।
तब व्यापारी एक साथ कई प्रकार की मार झेलता है, पहले जीएसटी पंजीयन के कारण ग्राहक कम, फिर उसकी दुकान में खरीदी महंगी होने से ग्राहक कम, और इन सभी के कारण पूंजी नही बढ़ पाती, तब अगर ग्राहक है भी तो पर्याप्त स्टॉक न होने के कारण विक्री कम ही रहती है।
कुल मिलाकर बहुत बड़ी किस्मत वाले छोटे व्यापारी ही ऊंचाई पा पाते है। अन्यथा छोटे और छोटे होते चले जा रहे है।
*सरकार चाहे तो बदल सकती है जीएसटी की सीरत और सूरत*
चालीस लाख से ऊपर वाले जीएसटी होल्डर चाहे वह सिंपल जीएसटी हो या कंपोजिशन वाले हो अभी उन पर कोई बदलाव किए बगैर उन व्यापारियों पर ध्यान दे जो जीरो से चालीख लाख के मध्य है जिन्होंने किसी वजह से जीएसटी नही लिया है या लेना ही नहीं चाहते।
दस लाख से चालीस लाख वार्षिक विक्रय को चार भागों में विभाजित कर दे। अ,ब, स, द
*अ* दस लाख के अंदर वार्षिक विक्रय करने वाले व्यापारियों को एक वर्ष में पांच हजार वार्षिक
*ब* दस लाख से अधिक और बीस लाख के अंदर वार्षिक विक्रय करने वाले व्यापारियों को दस हजार वार्षिक टैक्स
*स* बीस लाख से अधिक और तीस लाख के अंदर वार्षिक विक्रय करने वाले व्यापारियों को पंद्रह हजार वार्षिक टैक्स
*द* तीस लाख से अधिक और चालीस लाख के अंदर वार्षिक विक्रय करने वाले व्यापारियों को बीस हजार वार्षिक टैक्स
**सरकार इन सभी व्यापारियों से एक वर्ष में, एक पेज के सिर्फ एक स्वयं के घोषणा पत्र से उक्त टैक्स की रकम जमा करवाने का प्रावधान बना कर सभी को वर्गीकृत जीएसटी पंजीयन दे सकती है। वर्ष में जमा की जानी वाली रकम सरकार अपने विशेषज्ञों की मदद से निर्धारित कर सकती है*
यह अलग बात है कि चारो प्रकार को वर्गीकृत करते हुए सभी की क्रय विक्रय की क्षमता को दिशा निर्देश दिए जा सकते है। यह पंजीयन कंपोजिशन की तरह ही है, बस अंतर इतना है कि व्यापारी वकील, सीए, दलाल, और सरकारी अफसरों को लूट खसोट से बचा रह सकता है। और आत्मसम्मान के साथ अपना व्यवसाय कर सकता है।
अपने आर्टिकल में हमने सरकार को वर्तमान स्वरूप में किसी प्रकार बदलाव करने के लिए नही कहा, बल्कि जिन व्यापारियों से टैक्स का प्रतिशत शून्य है वही गरीब और बेचारा व्यापारी देश की आमदनी को चार गुना बढ़ा सकता है।
*सरकार चाहे तो यह चारो सेलेब के लिए बाध्यता न रखे बल्कि जो व्यापारी स्व-प्रेरणा से चारो में से जिस सेलेब में पंजीयन लेना चाहे अपनी मर्जी से ले ले। ऐसा करने पर सरकार और नए नियम का विरोध भी नही होगा।*
*अंतिम बात*
१- जीएसटी दर कम करे सरकार
*फायदा* टैक्स कम होने से नंबर एक पर व्यापार करने वाले व्यापारी का हौसला बढ़ेगा । इससे टैक्स जमा करने वालों की संख्या में इजाफा होगा । टैक्स चोरी करने वाले व्यापारियों से कंपटीशन आसान हो जाएगा। सरकार की भी आमदनी बढ़ेगी।
२- टैक्स के स्लैब एक या दो से ज्यादा नही होने चाहिए
*फायदा* सी ए और वकीलों पर निर्भरता कम होगी।
*इस पूरे प्रकरण को ऐसे भी समझा जा सकता है*
किसी कार्य हेतु मदद देने के लिए सौ व्यक्ति है, लेकिन हम मात्र दस लोगो से सौ सौ रुपए की मदद लेकर एक हजार रुपए एकत्र कर रहे है। और नब्बे लोगो से कोई मदद नहीं ले रहे।
लेकिन बकाया नब्बे व्यक्तियों में से कोई दस कोई बीस तीस कोई चालीस तो कोई पचास देने के लिए आगे आ भी रहा है लेकिन हम लेना ही नही चाहते।
लेकिन अगर उन्ही नब्बे लोगो से हम उक्त मदद लेते है तो हो सकता है हमारे उस कार्य के लिए दो हजार अतिरिक्त रकम एकत्र हो जाए।
यानि कुल बजट का तीन गुना।
यही जी एस टी के साथ हो रहा है, कि शेष नब्बे प्रतिशत व्यापारी शून्य जमा की स्थिति पर है।
अगर सभी को पंजीयन अनिवार्य कर दिया जाए तो यह राशि पांच गुना तक बढ़ सकती है।
शर्त यही है कि यह एक अलग तरह का पंजीयन होगा। जिसमे किसी से किसी प्रकार का कागज नही मांगा जाएगा।
सिर्फ वर्ष में एक बार स्वम के घोषणा-पत्र के साथ निश्चित राशि जमा करवाने का प्रावधान हो। घोषणा पत्र में गलत जानकारी के लिए व्यापारी ही उत्तरदाई होगा।
दो लाख ऊपर से दस लाख तक की विक्री वाले को भी वर्ष में एक या दो हजार रुपए रुपए जमा करने को कहा जाएगा तो कोई भी सहर्ष तैयार हो जाएगा।
*क्योंकि इसमें व्यापार, व्यापारी और सरकार सभी का फायदा ही फायदा है,*
१. बैंक में करेंट एकाउंट या लिमिट का फायदा ले सकता है।
२. कोई भी फैक्ट्री या एजेंसी उसे यह कह कर माल देने से मना नहीं कर सकती कि आपके पास जी एस टी नंबर नही है।
३.सरकारी या गैर सरकारी संस्था उससे माल लेने परहेज नहीं करेंगी।
४. पक्का बिल देने की क्षमता आ जाने से कोई भी ग्राहक उसका पैसा मार नही सकेगा।
५. कच्चे में माल खरीद का बेचने वालो से वह आसानी से प्रतिस्पर्धा कर पाएगा।
६. डिजिटल लेनदेन में वृद्धि होगी।
७. सरकार के पास देश में व्यापार और व्यापारी का सही आकलन हो पाएगा।
८. प्रत्येक व्यापारी को अपनी एक निश्चित पहचान मिलेगी।
९. प्रत्येक व्यापारी को आगे बढ़ने और अपने व्यापार को बढ़ाने का बराबर अवसर प्राप्त होगा।
१०. सरकारी मशनरी पर भी काम का दबाव कम होगा।
११. बैंको में जमा राशि पर भी वृद्धि होगी।
१२. बैंको का व्यवसाय भी बढ़ेगा।
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