लॉक डाउन में बेबस बेसहारा मजदूरो की दुर्दशा पर विचार करें राजमणि पटेल

By mnnews24x7.com Wed, May 20th 2020 मिसिरगवां समाचार     



लॉक डाउन में बेबस बेसहारा मजदूरो की दुर्दशा पर विचार ह

करोना वायरस के संकट से जंग में देश को बचाने के लिए आपके प्रयास तथा इस आपदा की घड़ी में सभी राजनैतिक दलों, स्वयंसेवी संस्थाओं, पत्रकारों, बुद्धिजीवियो एवं आम नागरिकों ने आपके कदमों का सहयोग और समर्थन किया है l



लेकिन लंबे लॉक डाउन के दौरान की जो जमीनी हकीकत है l उसे नजरअंदाज करने की बजाय गंभीरता से विचार, चिंतन और सुधार की महती आवश्यकता है, किसी भी सरकार के लिए विदेशी अतिथियों का स्वागत करना और सरकार बनाना तथा गिराना, किसी भी दल या व्यक्ति के सुझाव का मानना न मानना भी सरकार का अधिकार है l लेकिन अधिकार के साथ ही कर्तव्यों के प्रति सजग होना और पालन भी अवश्यक है l लेकिन शुरुआती दौर में इसे गंभीरता से नहीं लिया गया l


अगर शुरुआती दौर में जब केरल में करोना की पहचान हुई, दुनिया के दूसरे देशों में करोना की रफ्तार सामने थी, और कांग्रेस के नेता आदरणीय राहुल गांधी ने सरकार को सचेत होने की बात कही, कुछ सांसदो ने मास्क लगाकर सदन में गए आगाह करने का प्रयास किया तब उनका मजाक उड़ाया गया डांट कर उन्हे मास्क हटाने का निर्देश दिया गया l यह ऐसे संकेत थे जो यह साबित करते हैं कि सरकार पूरी तरह गंभीर नहीं थी अगर गंभीरता से लिया गया होता तो एसी भयावह स्थिति नहीं होती l



प्रधानमंत्री जी कोई भी गरीब जो अपने और बच्चों का पेट पालने के लिए घर से हजारों मील दूर जाता है, शहरो में जाता हैl वह बिना विशेष संकट के अपनी मर्जी से रोजी रोटी को लात नहीं मारता, छोड़ता नहीं, पलायन नहीं करता l

लॉक डाउन के बाद जब तक गरीब मजदूर और छात्रों के घरों में खाना था, पैसा था तब तक कुछ नहीं बोला उसके बाद भूखे पेट भी सरकार की मदद की राह देखता रह लेकिन जब खाने के लिए एक दाना नहीं बचा, पैसा खत्म हो गया, बच्चे भूख से बिलखने लगे, बुजुर्ग और बीमार दवाई के अभाव में दम तोड़ने लगे उन्हे किसी तरह की सहायता घोषणा के बाद भी नहीं मिली तब जिंदगी दाव में लगा कर घरो के लिए निकलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था l

लाखों के तादात में गरीब, मजदूर, छात्र पैदल निकल पड़े l गर्भवती महिलाएं गोदी में बच्चा, सर पर गठरी का भार लिए, विकलांग, बुजुर्ग, बीमार जिंदगी को हथेली पर ले कर चलने के लिए मजबूर हुए l रास्ते का मंजर तो दिल दहलाने वाला था l बच्चे दूध के लिए तरस रहे थे, भूख और प्यास से व्याकुल, कोई अपने बच्चों की लाश को कंधे पर लेकर चल रहा है, कोई बच्चों को कमर में लेकर, तो कोई मृत और बीमार पिता को चारपाई पर लेकर हज़ारों किलो मीटर का सफर तय कर रहे हैं, मजबूरी में ट्रूको और ट्राली में बैठ कर जा रहे हैं और उनसे किराया भी वसूला गया l


इतना ही नहीं रास्ते में मजदूरो के पैसे और मोबाइल लुटा गया उन्हे पुलिस द्वारा पीटा गया तथा दंड बैठक कराया गया जो अमानवियता की पराकाष्ठा है, ऎसे वेवस लोगो में एससी, एसटी ओ बी सी अल्प संख्यक एवं अन्य गरीब थे जो वास्तव में देश के निर्माण की बुनियाद है l इस संकट की घड़ी में कुछ सामाजिक संस्थाओं तथा व्यक्तियों द्वारा रास्ते में जो मदद की गई वह निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं l



जो मजदूर छात्र एवं पीड़ित बीमार पैदल, साईकिल, रिक्शा और रास्ते में ट्रकों में बैठकर कई प्रदेशों की सीमा पार करते हुए हजारों किलोमीटर की यात्रा कर रहे थे उन्हें रोकने तथा रुकने और खाने की व्यवस्था राज्य सरकारों द्वारा क्यो नहीं की गई.? अगर गंभीरता से लिया गया होता, निर्देशों का पालन किया गया होता तो शायद सैकड़ों मजदूरों की जिंदगी नहीं जाती, उर्रैया, उत्तर प्रदेश की और सागर मध्य प्रदेश तथा रेल की पटरीओं में दर्दनाक मौत की घटनाएं नहीं होती मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश की सरकारों ने घोर लापरवाही का उदाहरण पेश किया हैl माननीय प्रधानमंत्री जी मीडिया मालिकों द्वारा सरकार को खुश करने के लिए पत्रकारों की कलम पर प्रतिबंध नहीं लगाया होता, मजदूरों की सहायता, राहत और दुर्दशा तथा घटनाओं की सच्ची तस्वीर अगर आपके सामने आती तो शायद आप कुछ और अच्छा सोचते और करते लेकिन ऐसा नहीं हुआ l


यदि मजदूरों की समस्या को राज्य सरकारें गंभीरता से लेती तो आवश्यक था कि ऐसे सभी मजदूरों को जिला मुख्यालय में बुलाकर उन्हें ठहरने खाने-पीने की व्यवस्था करती और 14 दिन के बाद उनकी पूरी जांच करने के बाद बस या रेल द्वारा उनके घरो तक पहुचाया जाता तो गरीबो की जिंदगी बर्बाद नहीं होती और करोना का वयरस गाँवो तक नहीं फैलताl

यदि विदेशों से पैसे बालों को हवाई जहाज द्वारा भारत लाया जा सकता है तो गरीब मजदूरों और छात्रों को उनके घरों तक क्यों नहीं पहुंचाया जा सकता है.? जबकि करोना का वायरस विदेशों से ही आया है गरीबों से नहीं l बाहर विदेश से आने वाले विशेष व्यक्तियों को कुरानटाइल तथा गहन जांच किए बिना घरों में भेजना भी दोहरे व्यवहार का प्रतीक है l

केंद्र सरकार द्वारा लाखों करोड़ रुपए रुपए के पैकेज की घोषणा की गई, प्रदेश सरकारो द्वारा भी अनेको राहत सामग्री और सहायता राशि की घोषणा की गई, करोड़ों लोगों को भोजन कराने की जानकारी दी गईl इसके बाद भी ऐसी दुर्दशा क्यों.? देश की जनता जानना चाहती है कि लॉकडाउन के दिन से 15 मई 2020 के बीच कितने घरों में कितना कितना राशन, कितनी कितनी सहायता राशि, किस किस दिनांक को पहुंचाई गई l कितने मकान मालिकों ने किराया नहीं वसूला, कितने ठेकेदारों ने अपने मजदूरों का पूरा वेतन एवं भोजन दिया.? कितनी सहायता दी.? कितने बुजुर्गों, विकलांगों, विधवाओं तथा बीमारों के खाते में कितनी कितनी राशि पहुंचाई गई.? कितने लोगों को भोजन दिया गया.? प्रतिदिन कितनी मात्रा में दिया गया l दुर्घटना में मरने वाले मजदूरों को कितनी सहायता राशि किस किस तारीख को दी गई, इन सभी की जांच कराएं और जमीनी हकीकत का पता लगाने तथा देश की जनता को अवगत कराने की कृपा करे l

अगर लाकडाउन के बहाने व्यापक पैमाने पर सभी स्तर पर विचार विमर्श करने के बाद लॉक डाउन का निर्णय लिया जाता तो शायद इतनी गंभीर स्थित नहीं होती l

उमंगों की नदी बढ़ती किसी दिन सूख जाती है,कभी होता जो अपना है वही अनजान होता है I

जरा इन हुक्मरानों से कहे भूले नहीं सच को, तिलक के अक्षतो में भी लिखा बनवास होता है II

माननीय प्रधानमंत्री जी मैं व्यथित होकर हकीकत आपके सामने रखने हेतु पत्र लिख रहा हूं क्योंकि आप इस देश के प्रधानमंत्री हैं l हमें विश्वास है की आप गरीबो के भविष्य को देखते हुए इस दिशा में गंभीरता से विचार कर मानवीय आधार कार्यवाही करेंगे I



राजमणि पटेल

सांसद राज्य सभा

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