मोदी सरकार की घातक उदासीनता पर न्यायपालिका व मानवाधिकार आयोग चुप क्यों.. शिव सिंह एड
मोदी सरकार की घातक उदासीनता पर न्यायपालिका व मानवाधिकार आयोग चुप क्यों.. शिव सिंह एड
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मध्य प्रदेश 19 मई 2020.. आज कोरोना महामारी संकट के चलते देश के कोने कोने से जो नतीजे आ रहे हैं वह मोदी सरकार की घातक उदासीनता का परिणाम है देश में महामारी प्रवेश करने के एक माह पूर्व सरकार अवगत हो गई थी सरकार महामारी रोकना चाहती तो देश की सीमा रेखा सील कर सकती थी देश के जो नागरिक विदेशों में रह रहे थे उन्हें वही रोक सकती थी या फिर एयरपोर्ट में कोरोना जांच उपरांत पॉजिटिव नागरिकों को एक ही जगह आइसोलेट कर सकती थी लेकिन ऐसा न कर सरकार विदेशों से कोरोना पॉजिटिव पूंजीपति नागरिकों को हवाई यात्रा के माध्यम से लाने का सिलसिला बिना किसी जांच के निरंतर चालू रखा जिससे आज देश के हालात चिंताजनक हैं उधर सरकार महानगरों में रह रहे प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचा सकती थी इसके बाद लॉकडाउन करती लेकिन सरकार महामारी के नाम पर पीएम केयर फंड खोलकर व्यक्तिगत हितों के लिए खजाना भर्ती रही बाकी का समय मध्य प्रदेश की सरकार गिराने व बनाने में व्यतीत कर दिया तब तक महामारी देश में फैल चुकी थी उधर प्रधानमंत्री ने सांसदों पूर्व राष्ट्रपतियों पूर्व प्रधानमंत्रियों मुख्यमंत्रियों पूर्व मुख्यमंत्रियों विशेषज्ञों से बिना राय परामर्श के पूंजीपतियों उद्योगपतियों के साथ बैठकर यह निर्णय लिया कि महानगरों से प्रवासी मजदूर यदि घर चले जाएंगे तो उद्योग धंधे बंद हो जाएंगे और अचानक मीडिया चैनलों के माध्यम से प्रधानमंत्री ने देश को लॉकडाउन कर दिया आधी रात को ही पूंजीपति उद्योगपति उद्योगों में तालाबंदी कर अपने घर चला गया रात्रि में ही मेट्रो ट्रेन बसें बंद कर दी गई जिसका खामियाजा यह हुआ कि करोड़ों प्रवासी मजदूर महानगरों की सड़कों पर ही फंसा रह गया सरकार के मुखिया गरीब मजदूर की चिंता किए बगैर बिना किसी रणनीति के लॉकडाउन का ऐलान कर शारीरिक दूरी कि जगह सामाजिक दूरी का पाठ पढ़ाते रहे उधर पीएम केयर फंड में आए दानवीरो के खरबों रुपए से जहां गरीब मजदूर के रोटी की व्यवस्था करना था व्यवस्था तो दूर उसी पैसे से भगोडे एवं उद्योगपतियों का कर्ज़ माफ कर दिया गया प्रवासी मजदूरों गरीबों मध्यमवर्गीय परिवारों किसानों को मिली सिर्फ प्रताड़ना देश का निर्माता मजदूर जिसने उद्योग धंधों को खड़ा किया महल बनाए होटल बनाए न्याय के मंदिर बनाए देश को कोने-कोने से जोड़ने रात दिन मेहनत कर सड़के बनाई रेल पटरी बिछाई जेल एवं थाने बनाए मठ मंदिर बनाए सरकारें बनाई देश की अर्थव्यवस्था सुधारने रात दिन खून पसीना एक कर दिया आज वही मजदूर रोटी की भूख से दम तोड़ दिया जेल भेजा गया लाठियां खाया केमिकल से नहलाया गया निरंकुश सरकार की पुलिस ने लाठियों से जानवरों की तरह पीटा जिस सड़क को उसने बनाया उस सड़क में पैदल चलना नसीब नहीं हुआ सैकड़ों मजदूरों की ट्रेन एवं सड़क दुर्घटना में भयावह मौतें हुई परिजन चेहरा तक पहचान नहीं पाए छोटे-छोटे बच्चों को कंधे पीठ अटैची पर लिटाकर ले जाते घसीटते मजदूर नजर आए गर्भवती महिलाएं गोद में बच्चा लेकर पैदल यात्राएं की बेचारे मजदूर बूढ़े मां बाप को साइकिल पर बैठाए नजर आए कोई सिर पर गठरी लिए है कोई बच्चे को पीठ पर बांधे ट्रक की रस्सी पकड़कर चढ़ने का प्रयास करता दिखा जिसने शहर बनाए वह लाचार अकेला छोड़ दिया गया हजारों किलोमीटर की यात्रा पर मुश्किल से दो-तीन बार समाजसेवियों की रोटी नसीब हुई शहरों में भोजन के लिए दंगे शुरू हो गए तब मजदूर को लगा कि मौत नजदीक है यदि शहर नहीं छोड़े तो मरते वक्त मां बाप की गोद भी नसीब नहीं हो पाएगी ऐसे पीड़ा व कष्ट के चलते उसने शहर छोड़ने का संकल्प लिया और गांव की ओर चल पड़ा इसके बाद भी देश के प्रधानमंत्री के विज्ञापनों से ऐसा लगता था कि इनसे बड़ा हिमायती गरीब मजदूर का कोई नहीं है मजदूरों की मौत पर सरकार के मुखिया ने मात्र संवेदना व्यक्त कर इतिश्री कर लिया ऐसा लगता है कि देश के मुखिया के डर से सांसद विधायकों ने चूड़ियां पहन ली है देश में दहशत का माहौल है ग्रह युद्ध जैसे हालात हैं कोरोना महामारी से निपटने स्वास्थ्य सुविधाएं काफी दूर हैं देशवासी घरों में कैद हैं आपातकाल जैसे हालात निर्मित है लोकतंत्र का राज खत्म हो चुका है आज हमारा तंत्र उद्योगपतियों पूजीपतियों के बिस्तर पर सो गया है ऐसी विषम परिस्थितियों में देश के समक्ष जब भी संकट खड़ा हुआ इतिहास गवाह है कि देश के दो प्रमुख अंग न्यायपालिका एवं मानवाधिकार आयोग आगे आकर निरंकुश राजतंत्र को ठीक करने एवं आईना दिखाने का काम किए हैं न्यायपालिका के विशेषाधिकार को देखा जाए तो जब देश की विधायिका और कार्यपालिका अपने कर्तव्य को पूरा करने में उदासीन हो जाएं नागरिकों के साथ अनुचित व्यवहार करने लगे उनके मूल अधिकारों का हनन करने लगे ऐसी स्थिति में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32(1) के अधीन सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता शक्ति व्यापक है जब सरकार नागरिकों के संवैधानिक सीमाओं पर अतिक्रमण करती हैं तो सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे कार्यों की जांच एवं अंकुश लगाने का अधिकार प्राप्त है ऐसे में माननीय सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को सीमित करने का अधिकार भी किसी को नहीं है इसी तरह मानवाधिकार आयोग स्वतंत्र वैधानिक संस्था है जो देश के नागरिकों का प्रहरी है मानव अधिकार आयोग जीवन के अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार समानता के अधिकार की रक्षा करता है तथा गुलामी और यातना से मुक्ति दिलाता है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है जहां मानव अधिकारों का हनन होता है वहां सीधे जांच कार्यवाही करने का अधिकार प्राप्त होता है लेकिन आज हमारे देश की प्रमुख महत्वपूर्ण संस्थाएं मोदी राज में चुप क्यों हैं देश के प्रत्येक नागरिक के मन में यह शब्द बार-बार पैदा हो रहा है ऐसे हालातों में देश के नागरिकों की रक्षा का अधिकार संस्थाओं को प्राप्त है जिस पर उन्हें आगे आना चाहिए
भवदीय
शिव सिंह एडवोकेट
अध्यक्ष ए .टी. एफ
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